✍️पैरो तले ज़मी✍️
✍️पैरो तले ज़मी✍️
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वो जब बहोत पास थी
कोई बची ना आस थी
वो जब दूर चली गयी…
कोई बची ना सांस थी
सारे मौसम हमें रास थे,
वो जान-ए-बहार खास थी
बेमौसम उस पतझड़ में..
गुलाब की ख़ुश्बू उदास थी
वो ख़ुश्बू थी हवाँ में उडी
बस पैरो तले ज़मी साथ थी
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✍️”अशांत”शेखर✍️
22/06/2022