✍चाय चाय करते रहे….(चाय-पकौड़ा श्रृंखला दोहा, कविता क्रमांक-02)✍
चाय चाय करते रहे,तन से निकली हाय,
पकौड़ा अब तैयार हैं, तब तो छानो चाय।।1।।
पकौड़ा बेचन में चला, मन में राखी खोट,
लाभ हुआ या हानि हुई, न देंगे अब वोट।।2
प्रकट हुआ संसार में,पकौड़ा अर्थ शास्त्र,
धैर्य रखो तो सही, बनेगा पकौड़ा प्रक्षेपास्त्र।।3।।
सुन्दर स्वप्न दिखा दिए, युवा पाएंगे कारोबार,
पकौड़ा बेचो तो सही, मिलते चार हजार।।4।।
अच्छे दिन बस आ रहे, थोड़ा करो इन्तजार,
सबको बैठा देंगे हम, देके पकौड़ा कार।।5।।
खोलें बीच बाज़ार में, पकौड़ा की अच्छी शॉप,
दिल में मन में न रखें, नोटबन्दी का ख़ौफ़।।6।।
सेको मध्यम आँच पर, मूँग की दाल पकौड़ा,
पप्पू को भी भाएगा, दे दो थोड़ा थोड़ा।।7।।
हींग का पानी पीओ,खाय पकौड़ा संग,
वोट बाहि को दीजिए, लाभ मिले बहुरंग।।8।।
खाली पेट पकौड़ा, कर जाता नुकसान,
हल्का हल्का दर्द हो, ज्यों जुमले के बाण।।9।।
कबहुँ नहीं भई खाइए, पकौड़ा भोजन के अन्त,
स्थिति ऐसी बिगड़ती, ज्यों हो जेल के सन्त।।10।।
(इन दोहों को सामरिक परिदृश्य से जोड़ने का प्रयास किया गया है। यदि किसी सज्जन को ठेस पहुँचे तो वह क्षमा करे)