=☆ अशांत जिन्दगी ☆=
जिन्दगी और सावन की घटा !
इनका भरोसा क्या ?
स्वच्छ आकाश को ,
चमकते सूरज को ,
ये घटाएं कब घेर लेंगी ,
कौन जान सका है ?
वारिस की तेज फुहारें
महकती धरा को दलदल बनाकर
चल देती है क्षण भर में ,
बस रह जाती हैं
छज्जे की टिप – टिप करती बूंदें ,
आंसुओं के साथ सुर मिलाने को