★ ” घड़ियाली- शुभ चिंतक ” ★
नही ! नही !!
तुम मेरे शुभचिंतक नही हो सकते !
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तुम ऐसे परजीवी कीड़े हो
जो समाज का खून चूसकर जीते हो ,
अपने अस्तित्व के लिए
दस – बीस चमचों को रखते हो ,
छुटे सांड़ की तरह
सड़कों पर हुंकार भरते हो ,
मेहनत – ईमानदारी की फसल को
बरबाद हो करते ,
नही ! नही !!
तुम मेरे शुभचिंतक नही हो सकते !
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आजादी के लिए इस धरा को
जिसने अपने खून से सींचा ,
तुमने उनका हाल कभी पूछा ?
श्रद्धा के नाम पर
उनको स्वतंत्रता सेनानी कहा ,
सहायता के नाम पर
कुछ रूपये पेंशन में दिया ,
खुद ऐश करते हो
ये गरीबी में हैं मरते ,
नही ! नही !!
तुम मेरे शुभचिंतक नही हो सकते !
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तुमने ‘ गांधी जी ‘ को भुनाया ,
‘ नेताजी – भगत – आजाद ‘ को भुलाया , ‘
राम – रहीम को आपस में लड़ाया ,
अब देश को जातियों में बाँटकर
अंबेडकर को नीलाम हो करते ,
नही ! नही! !!
तुम मेरे शुभचिंतक नही हो सकते !
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