◆ संस्मरण / अक्षर ज्ञान
■ यादों की खिड़की-
■ पुण्य स्मरण प्रथम गुरु का
◆अक्षर ज्ञान और फक्को बुआ जी
◆विद्यार्थी जीवन की पहली मित्र
【प्रणय प्रभात】
आज अपने शैशव की स्मृतियों से आपको परिचित कराता हूँ। यादों की खिड़की खोलकर इस संस्मरण के माध्यम से, जिसका शब्द-शब्द कृतज्ञता में डूबा हुआ है। बिना किसी हिचक के बताना चाहता हूँ कि शाला में प्रवेश से पूर्व ही मुझे अक्षर ज्ञान करा देने वाली प्रथम गुरु रहीं पूज्य फक्को बुआजी, जो अपने घर पर पढ़ाया करती थीं।वे सोती (श्रोत्रिय) गली स्थित मेरे पड़ोस में ही रहती थीं। आप नगरी के ख्यातनाम कवि तथा वन विभाग में मेरे श्रद्धेय पिताजी के समकक्ष सहकर्मी श्री चतुर्भुज शर्मा “पंकज” जी की बुआ थीं। यह वो दौर था जब लकड़ी की तख़्ती पर सरकंडे की क़लम (बर्रू) के जरिए गीली खड़िया मिट्टी से लिखा जाता था। यह लेखन सुलेख कहलाता था जो अक्षर-अक्षर सुंदर बनाए देता था। विद्यार्थी जीवन के इस शैशव-काल में मेरी संरक्षक सखी राधा मणि थीं। जिनका वास्ता टोडी गणेश जी के पीछे स्थित शेषाद्रि परिवार से था। उम्र और क़द-काठी में मुझसे काफी बड़ी राधा मणि ही शायद विद्यार्थी जीवन की पहली मित्र थीं। मुझे घर से ले जाने और घर छोड़ कर जाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर थी। यह सिलसिला कक्षा 3 तक यानि लगभग 5 साल चला। फक्को बुआ जी की डांट से लेकर पारख जी के बाग स्थित प्राथमिक शाला के शिक्षकों की मार तक से उपजी हताशा को दूर करना भी राधा मणि का ही काम था। इसके आगे उनके बारे में आज मेरी स्मृति लगभग शून्य सी है। वे कहाँ हैं, कैसी हैं नहीं पता। बावजूद इसके कृतज्ञ हूँ उनके मित्रवत नेह और संरक्षण के प्रति। कुछ वर्षों के बाद इसी परिवार के सदस्य देशिका मणि मेरे सहपाठी रहे। जो आज देश या विदेश में अपनी मेधा के बलबूते किसी बड़े ओहदे पर होंगे। परिचय उनके छोटे भाई “चेंचू” से भी रहा। जिनका नूल नाम ब तब पता था, न अब पता है। सबसे छोटी बहिन कृष्णा मणि मेरी छोटी बहिन की सहपाठी रहीं। यह है विद्यार्थी जीवन की शुरुआत से जुड़ी कुछ यादें। शत-शत नमन #फक्को_बुआजी को भी, जिनके द्वारा रखी गई नींव पर शैक्षणिक इमारत सुलेख सी सुंदर भले ही न रही हो पर सुदृढ ज़रूर रही।श्योपुर की सब्ज़ी मंडी के पिछवाड़े स्थित पारख जी के बाग़ की प्राथमिक शाला (सरकारी) से लेकर प्राचीन किलै में चलने वाले कॉलेज तक का छात्र जीवन आज भी स्मृति पटल पर है। आज दोनों संस्थान कथित तौर पर उन्नत होकर अन्यत्र जा चुके हैं पर उनकी यादें मेरे ज़हन में खुशबू सी रची-बसी हैं। वाक़ई, तब बेहद सुरम्य और सदाबहार था हमारा छोटा सा शहर। छात्र जीवन भी।।
#प्रणय_प्रभात