■ हास्य के रंग : व्यंग्य के संग
■ रंग गैरूआ…..!!
【प्रणय प्रभात】
“छोटे से गांव
अटेल के पटेल का लड़का भैरूआ,
कई दिनों से गाता घूम रहा था
रंग दे तू मोहे गैरूआ।
एक दिन इसी गांव की अल्हड़ गौरी,
धन्ना चौधरी की छोरी,
गाने क नशे में निशाना चूक गई
और मुंह में भरा बंदर छाप लाल दंत मंजन
भैरूआ पर थूक गई।
आधे मिनट में गायकी का भूत,
तालाब किनारे वाले पीपल पर टंग गया।
बेचारा भैरूआ ऊपर से नीचे तक गैरूआ रंग में रंग गया।
अब लोग समझ रहे हैं कि भैरूआ सुधर गया है।
सच तो यह है कि बेचारा गैरूए रंग से ही डर गया है।
गांव के मुस्टण्डे उसके हाल पर,
अब भी तरस नहीं खा रहे हैं।
भैरूआ को केसरिया बालम कह कर बुला रहे हैं।
ये छोटी सी कहानी जो मैने आपको सुनाई
इसमें भी एक इशारा छुपा है मेरे भाई!
किसी रंग के साथ जब कोई खेल करने लगता है।
तो उसी रंग से सीधा-साधा इंसान डरने लगता है।।”
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