नफ़रतों के जो शोले........,भड़कने लगे
खुली आँख से तुम ना दिखती, सपनों में ही आती हो।
ज़िंदा ब्रश
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
आर्या कंपटीशन कोचिंग क्लासेज केदलीपुर ईरनी रोड ठेकमा आजमगढ़
*मृत्युलोक में देह काल ने, कुतर-कुतर कर खाई (गीत)*
हर रोज़ सोचता हूं यूं तुम्हें आवाज़ दूं,
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आप काम करते हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है, आप काम करने वक्त कितन
कोई मिठाई तुम्हारे लिए नहीं बनी ..( हास्य व्यंग कविता )
बीती एक और होली, व्हिस्की ब्रैंडी रम वोदका रंग ख़ूब चढे़--
मेरे दर तक तूफां को जो आना था।
मां के आंचल में कुछ ऐसी अजमत रही।
अधूरा नहीं हूँ मैं तेरे बिना
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
घृणा के बारे में / मुसाफ़िर बैठा