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13 Dec 2022 · 2 min read

■ संस्मरण / वो अनूठे नौ दिवस…..

#संस्मरण-
■ अद्भुत, अविस्मरणीय रामकथा
◆ जब अपराध व अनहोनी से मुक्त रहे 9 दिवस
【प्रणय प्रभात】
पढ़ने में यह शीर्षक शायद आपको अविश्वसनीय सा लगे, मगर जो लिखा जा रहा है वो अक्षरक्षः सच है। बात 1996 के मधुमास (बसंत काल) यानि फरवरी/मार्च माह की है। उन दिनों मैं ग्वालियर से नव प्रकाशित दैनिक “नवभारत” में कार्यरत हुआ करता था। क्षेत्र में स्थापित व सम्मानजनक पत्रकारिता का सूत्रपात करने वाले नवभारत के लिए रिपोर्टिंग वाकई गौरव का विषय थी। जिसने ज़िला कार्यालय की स्थापना करते हुए तहसील मुख्यालय श्योपुर को अग्रिम रूप से ज़िले का दर्ज़ा प्रदान किया था। फिलहाल, इस संस्मरण के मूल पर आता हूँ। शहर के प्रतिष्ठित आढ़त व्यापारी और धर्मनिष्ठ समाजसेवी (स्व.) श्री गोपालदास गर्ग (शिवपुरी वाले) ने संगीतमय श्री रामकथा का एक भव्य आयोजन स्वप्रेरित भाव से कराया। श्री हजारेश्वर उद्यान स्थित रंगमंच परिसर को भव्य पांडाल का रूप दिया गया। आयोजन 9 दिवसीय था। नगरी के आयोजनों में सबसे बड़े और प्रमुख आयोजन की दैनिक रिपार्टिंग तब एक बड़ी चुनौती थी। दौर समाचारों के हस्तलेखन का था। बिजली की आंख-मिचोली आम बात थी। संचार के माध्यम न के बराबर थे। कामचलाऊ व खर्चीली दूरभाष सेवा भी भगवान भरोसे होती थी। त्वरित समाचार प्रेषण का एकमात्र माध्यम सामान्य दूरभाष पर निर्भर फेक्स हुआ करता था। जिसकी सेवाएं दो-तीन बूथों पर मनमानी दरों पर उपलब्ध थीं। बेनागा दैनिक अख़बार के दो पृष्ठ भरने होते थे। हर छोटी-बड़ी खबर पाठकों तक पहुंचाने की ज़बरदस्त स्पर्द्धा थी। प्रतिद्वंद्विता एक स्थापित और विशुद्ध व्यावसायिक समूह के समाचार पत्र से थी। जिसे नवभारत ने पहले ही दिन से कड़ी चुनौती देकर बड़े पाठक वर्ग के दिलों पर अपना राज क़ायम कर लिया था। ऐसे में स्वाभाविक था कि दूर-दराज़ तक ख़बर पहुंचाने वाले नवभारत से प्रबल जन अपेक्षाएं हुआ करती थीं। नौ दिवसीय रामकथा के इस विराट समागम को हर दिन हज़ारों पाठकों तक रोचक और विस्तृत रूप से पहुंचाने की उम्मीदें भी नवभारत से ही सर्वाधिक थीं। जो पत्रकारिता को एक बड़ा मिशन बना कर मैदान में कूदा था।

Language: Hindi
1 Like · 120 Views
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