■ व्यंग्य / समझाइश
#व्यंग्य :-
■ समझाइश_सत्तारूढ़ों_को
【प्रणय प्रभात】
“आसमान की ओर मुंह किए
दिन-रात एक सुर में रोते रहें।
सियार, लोमड़ी और भेड़िये
लामबंद होते हों तो होते रहें।
भूले से भी भूल न दोहराना,
तुम बस अपनी नस्ल बचाना।
वरना एक बार फिर
पहचान लिए जाओगे
और हमेशा-हमेशा के लिए
लकड़बग्घे मान लिए जाओगे।।”
■■■■■