Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Feb 2023 · 5 min read

■ व्यंग्य आलेख- काहे का प्रोटोकॉल…?

■ प्रोटोकॉल से परे मख़ौल है जहां की परिपाटी
★ बर्चस्व की जंग, कार्यक्रमों का कूंडॉ
【प्रणय प्रभात】
आपने प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाने वाले आयोजन कई बार देखे होंगे। बावजूद इसके ऐसा कहीं नहीं देखा होगा कि समूचे प्रोटोकॉल को तहस-नहस कर दिया जाए। साथ ही एक मनमाना प्रोटोकॉल परिपाटी बना दिया जाए। इस नायाब कारनामे को अंजाम देने वाला पहला ज़िला शायद श्योपुर है। जहां आयोजन के नाम पर सारे औपचारिक विधानों को खुल कर धता बताई जाती है। मध्यप्रदेश के इस ज़िले में आयोजन परम्परा से खिलवाड़ की एक परम्परा बन गई है। जिससे पीछा छुड़ा पाना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन सा हो गया है।
प्रदेश की सरहद पर बसे श्योपुर ने मंचीय आयोजन की हर हद को पार करने का कीर्तिमान अपने नाम बनाए रखने की मानो शपथ सी उठा ली है। तभी यहां मंच पर सभापति (अध्यक्ष) से ऊंचा दर्ज़ा मुख्य अतिथि का माना जाता है। जिसके पीछे बर्चस्व की दिमागी जंग बड़ी वजह होती है। इससे भी बड़ी हास्यास्पद स्थिति यह है कि अधिकांश आयोजन में मेज़बान ख़ुद ही मेहमान बन जाते हैं। घराती और बराती की भूमिका एक साथ निभाने के शौक़ीन यहां हर कार्यक्षेत्र में मौजूद हैं। फिर चाहे आयोजन प्रशासनिक हो, राजनैतिक हो, संस्थागत हो या विभागीय।
मज़े की बात तो यह है कि जिनके कंधों पर आयोजक के रूप में ज़िम्मेदारी होती है, अक़्सर वही अतिथि रूप में मंच पर विराजमान दिखाई देते हैं। इसी शौक़ के चलते ज़्यादातर आयोजन जेबी या घरेलू से प्रतीत होते हैं। जिन्हें महज रस्म-अदायगी से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। इस खेल के पीछे की असली मंशा जंगल के मोर जंगल मे नचा कर बज़ट या मद का सूपड़ा साफ़ करने की होती है। गाहै-बगाहे कुछ बाहरी लोगों को मंच साझा करने का मौक़ा चाहे-अनचाहे दिया जाता है। जिनमें या तो रसूखदार लोग शामिल होते हैं या फिर वो चहेते जो चापलूसी और कसीदाकारी में माहिर हैं। सबसे आसान अतिथि यहां उन्हें माना जाता है, जो एक आदेश पर घण्टों के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
प्रोटोकॉल-विरुद्ध मंचीय आयोजन के दौरान सबसे ज़्यादा धर्मसंकट निरीह संचालक के सामने होता है। जिसे स्वागत और संबोधन दोनों प्रक्रियाओं को चाहे-अनचाहे उलटना-पलटना पड़ता है। न पलटे तो मुख्य अतिथि ख़ुद शर्म-हया को ताक में रखकर उसे इसके लिए बाध्य करते देखा जा सकता है। मानसिकता ख़ुद को सबसे आला साबित करने की होती है। फिर चाहे अध्यक्ष की आबरू का सरे-आम कूंडा ही क्यों न हो जाए।
इस परिपाटी के चलते लगभग हर आयोजन में संचालक की मजबूरी होती है कि वह अध्यक्ष से पहले मुख्य अतिथि को माल्यार्पण करवाए और मुख्य अतिथि को भाषण के लिए सभापति (अध्यक्ष) के बाद आमंत्रित करे। मंचीय परम्परा से खिलवाड़ की इस बेहूदी परिपाटी ने अध्यक्ष की आसंदी को इतना हल्का बना दिया है कि उस पर बैठने के लिए हल्का आदमी ही मुहैया हो पाता है। जबकि मुख्य अतिथि बनने के लिए तमाम लोग आयोजकों की मनुहार तक करने से नहीं चूकते।
आलम अक़्सर यह होता है कि फोकट का चन्दन घिसने के लिए बुलाया जाने वाला नंदन (मंच संचालक) अध्यक्ष और मुख्य अतिथि के बीच प्रतिष्ठा की जंग में दो पाटों के बीच फंसे होने तक की अनुभूति करता है। यह अलग बात है कि माइक पकड़ने और सुर्खी में रहने का कीड़ा उसे बारम्बार ज़लालत के बाद भी आयोजन में खींच लाता है। कुछ शासकीय सेवक होने के कारण हुक्म-अदूली नहीं कर पाते और मन मसोस कर इस भूमिका का निर्वाह करते दिखते हैं। जिनसे अध्यक्ष और मुख्य अतिथि दोनों का रसूख ज़्यादा होता है। लिहाजा उनका जोख़िम भी बढ़ जाता है। तमाम बार आयोजकों को अतिथियों के साथ बिन बुलाए आने वाले पुछल्लों को भी अतिथि बनाकर मंच पर बैठाना पड़ता है। जिन्हें माननीय, सम्माननीय, आदरणीय और श्रद्धेय कहना बेचारे संचालक की भी विवशता बन जाता है। सम्भवतः यही वजह है कि तमाम ग़ैरतमंद लोग यहां संचालन से दामन झटक चुके हैं। जिनकी जगह विरदावली गाने और कोलाहल मचाने वाले विदूषकों ने ले ली है।
जो गरिमामयी आयोजन की गरिमा को तार-तार कर के ही दम लेते हैं। गला फाड़-फाड़ कर तालियां पिटवाने के आदी इस श्रेणी के संचालक यहां आयोजक व अतिथि दोनों को रास आते हैं, क्योंकि उनका अपना स्तर भी तालियों और तारीफ़ों पर निर्भर करता है।
मज़े की बात यह है आयोजन के लिए अतिथि चयन का भी ज़िले में कोई आधार नहीं। गूगल बाबा की कृपा से हर छुटभैया हर किसी विषय पर भाषण करने में निपुण होता है। लिहाजा आयोजक भी खानापूर्ति के लिए किसी ऐसे को बुला लेते हैं, जो आसानी से आ धमके। इसके लिए न सम्वन्धित विषय का अनुभव आवश्यक है व विषय सम्मत विशेषज्ञता। इससे भी अधिक हास्यास्पद बात यह है कि यहां आयोजन और वक्ता के बीच गुण-धर्म का मिलान भी मायने नहीं रखता। यहां सरदार भगत सिंह से जुड़े आयोजन में गांधीवादी तो बापू से जुड़े कार्यक्रम में गोड़सेवादी मुख्य वक्ता बनते देखे जा सकते हैं। बस उनके नाम के साथ एक ओहदा जुड़ा होना चाहिए। इसे आयोजनकर्ताओं की मूर्खता से अधिक अतिथियों की सैद्धांतिक बेशर्मी भी कहा जा सकता है। इसी तरह दाढ़ में तम्बाकू दाब कर व्यसन-मुक्ति पर बोलने वाले धुरंधर भी यहां कम नहीं। नशे के ख़िलाफ़ बोलने वाले देवदास प्रेरक के बजाय उपहास का पात्र बनें तो बनते रहें। आयोजकों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। कल को शाकाहार पर मांसाहारी और मांसाहार पर शुद्ध शाकाहारी व्याख्यान देते नज़र आएं तो कोई ताज्जुब नहीं। शर्मनाक स्थिति तब उत्पन्न होती है जब बेसुरे लोग सुरीले आयोजन में निर्णायक बने नज़र आते हैं। यही नहीं, साहित्यिक व अकादमिक आयोजन की अध्यक्षता अक़्सर उनके सुपुर्द की जाती है, जिनका साहित्य की किसी विधा से दूर-दूर तक कोई नाता न हो। चाहे जिसे “समाजसेवी” का तमगा लगा कर मंच पर थोपना यहां की प्राचीन परंपरा है। जेबी संगठनों के स्वयम्भू व स्वनामधन्य नुमाइंदे अतिथि रूप में बारहमासी फूल की तरह उपलब्ध होते हैं।
कुल मिला कर आयोजन के नाम पर विषय, प्रसंग, विभूति और दिवस के प्रति सम्मान की मंशा मख़ौल साबित होती देखी जाती है। जिसके पीछे असंबद्धता और चाटुकारिता बड़ी वजह है। इससे भी बड़ी वजह है कृतार्थ होने की स्वार्थी सोच के साथ अपात्रों को उपकृत करते रहना। भले ही कुछ अच्छा पाने की चाह में आए या दवाब बना कर लाए गए दर्शकों व श्रोताओं का टाइम ही खोटा क्यों न हो। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसे आयोजनों के नाम पर खरपतवार की खेती करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र में प्रबुद्ध कहलाते हैं और झूठे-सच्चे बिशेषणों से अलंकृत होकर सुपात्रों के अधिकारों का हनन वैसे ही करते हैं, जैसे सरकारी या संस्थागत बज़ट में सेंधमारी। लगता नहीं है कि कुत्सित राजनीति इस बीमारी को कभी ठीक होने देगी, ज्योंकि उसकी अपनी दुकान ऐसी दीमकों के पालन का सामान बेच कर चल रही है। भगवान भली करे।।

■ प्रणय प्रभात ■
संपादक / न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 189 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
खरी - खरी
खरी - खरी
Mamta Singh Devaa
होली
होली
सूरज राम आदित्य (Suraj Ram Aditya)
*याद है  हमको हमारा  जमाना*
*याद है हमको हमारा जमाना*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
डाकू आ सांसद फूलन देवी।
डाकू आ सांसद फूलन देवी।
Acharya Rama Nand Mandal
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Sidhartha Mishra
बदलती हवाओं की परवाह ना कर रहगुजर
बदलती हवाओं की परवाह ना कर रहगुजर
VINOD CHAUHAN
जीवन में मोह माया का अपना रंग है।
जीवन में मोह माया का अपना रंग है।
Neeraj Agarwal
नववर्ष।
नववर्ष।
Manisha Manjari
था मैं तेरी जुल्फों को संवारने की ख्वाबों में
था मैं तेरी जुल्फों को संवारने की ख्वाबों में
Writer_ermkumar
खुद के हाथ में पत्थर,दिल शीशे की दीवार है।
खुद के हाथ में पत्थर,दिल शीशे की दीवार है।
Priya princess panwar
*कण-कण में भगवान हैं, कण-कण में प्रभु राम (कुंडलिया)*
*कण-कण में भगवान हैं, कण-कण में प्रभु राम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
खुद ही रोए और खुद ही चुप हो गए,
खुद ही रोए और खुद ही चुप हो गए,
Vishal babu (vishu)
काश़ वो वक़्त लौट कर
काश़ वो वक़्त लौट कर
Dr fauzia Naseem shad
विधा - गीत
विधा - गीत
Harminder Kaur
ईमेल आपके मस्तिष्क की लिंक है और उस मोबाइल की हिस्ट्री आपके
ईमेल आपके मस्तिष्क की लिंक है और उस मोबाइल की हिस्ट्री आपके
Rj Anand Prajapati
चलते रहना ही जीवन है।
चलते रहना ही जीवन है।
संजय कुमार संजू
"
*Author प्रणय प्रभात*
हर दिन के सूर्योदय में
हर दिन के सूर्योदय में
Sangeeta Beniwal
करना था यदि ऐसा तुम्हें मेरे संग में
करना था यदि ऐसा तुम्हें मेरे संग में
gurudeenverma198
गुरु से बडा ना कोय🙏
गुरु से बडा ना कोय🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
नव वर्ष मंगलमय हो
नव वर्ष मंगलमय हो
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
💐प्रेम कौतुक-339💐
💐प्रेम कौतुक-339💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तुम्हें रूठना आता है मैं मनाना सीख लूँगा,
तुम्हें रूठना आता है मैं मनाना सीख लूँगा,
pravin sharma
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
Dr Archana Gupta
गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल / MUSAFIR BAITHA
गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
Surinder blackpen
पापा के परी
पापा के परी
जय लगन कुमार हैप्पी
24/244. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/244. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हम आगे ही देखते हैं
हम आगे ही देखते हैं
Santosh Shrivastava
Loading...