■ विश्लेषण / परिणामो का…
■ हिमाचल के सबक़
◆ सर्वोपरि है जन अभिलाषा
【प्रणय प्रभात】
बेशक गुरुवार को भाजपा ने गुजरात के दिल मे गुरुत्तर भूमिका का प्रदर्शन किया हो। बावजूद इसके हिमाचल की हार ने जीत के जश्न में डूबी भाजपा को एक सबक़ देने का काम किया है। जिसे आने वाले समय के लिहाज से हाहाकार का संकेत भी माना जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियों के बूते चुनाव जीतने वाली भाजपा को संकेतों की अपेक्षा भारी पड़ सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होम-ग्राउंड पर प्रचंड जीत भले ही अपने आप मे एक कीर्तिमान हो, मगर यह नहीं भूला जाना चाहिए कि यह कारनामा मोदी की उन सौगातों के अम्बार की देन है, जिस पर मोदी की छाप लगी हुई है। अपने सूबे पर दिल-जान से मेहरबान नमो पर जनता का प्यार-दुलार किसी से छुपा नहीं है। व्यापारिक समझ व अथक श्रम के संगम गुजरात के लोग आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी भी हैं। संभवतः यही कारण है कि वहां आम मतदाता तक मुफ्त की रेवड़ी पाने को लेकर कतई उतावले नहीं दिखे। नतीजा यह रहा कि नए विकल्प के तौर पर झाड़ू लेकर पहुंचे टोपीधारी मोदी की दीवार में चार-छह सूराख बनाने से आगे नहीं बढ़ पाए। कुशल नेतृत्व और इच्छाशक्ति की कमी से जूझती पंजा पार्टी पहले से बैकफुट पर थी। ऐसे में भाजपा को फ्रंटफुट पर नज़र आता ही था और जो परिणाम आया, वो अप्रत्याशित या अकल्पनीय नहीं था। इसके विपरीत जो झटका हिमाचली जनता ने दिया है, वह इस बार ज़रा भी प्रत्याशित नहीं था। प्रदेश स्तर के मुद्दों और अपनी परिपाटी पर अडिग पहाड़ी मतदाताओं ने जो पटखनी सत्तारूढ़ दल को दी है, वह भाजपा के लिए बड़ा सबक़ है। साथ ही देश के अन्यान्य राज्यों की आम जनता के लिए एक बड़ा संदेश भी। पूरी तरह खामोशी की चादर ओढ़े हिमाचली मतदाताओं ने सत्ता और जनता दोनों को सीख देने का काम किया है। मतदाताओं ने जहां राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों का सम्मान करते हुए कमल दल को सम्मानजनक हार का तोहफा अपनी परम्परा के विरुद्ध जाते हुए दिया। वहीं उसे सिंहासन तक पहुंचने से वंचित करते हुए यह भी समझा दिया कि प्रांतीय, आंचलिक व स्थानीय मसलों की अपनी अहमियत होती है। जिसकी उपेक्षा को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आने वाले समय मे कुछ राज्यों के चुनावी समर में कूदने की तैयारी कर रही भाजपा को गुजरात फतह की मस्ती से उबरकर पहाड़ से मिली पस्ती पर गहन चिंतन करना होगा। अन्यथा जनता की मूलभूत ज़रूरतों व समस्याओं की अनदेखी उसके लिए आगे भी संकट का सबब बनेगी। भूला नहीं जाना चाहिए कि मुफ्त की रेवड़ी बाँटने की स्पर्द्धा में उसे टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी मैदान में सक्रिय है। जो भाजपा के ही फार्मूले का पेटेंट अपने नाम कराने में सफल रही है। प्रमाण है एमसीडी चुनाव के नतीजे और गुजरात मे प्रभावी सेंधमारी। ऐसे में चिर-परिचित दावों और वादों वाली काठ की हांडी को अगली बार जनाक्रोश के चूल्हे पर चढ़ाना और वोटों की खीर पकाना पहले की तरहः मुमकिन नहीं होगा। कमरतोड़ मंहगाई, भ्रष्राचार, बेरोजगारी जैसी समस्याओं और कर्मचारी हितों की उपेक्षा अगले साल प्रतावित चुनावों में अहम मुद्दा बन कर उभरेंगे और भाजपा को उनसे समय रहते पार पाना होगा। इतना तो तय है कि हिमाचल की जीत कांग्रेस को तथा एमसीडी की जीत सहित गुजरात तक विस्तार आम आदमी पार्टी को और कड़ी चुनौती का मादा देगा। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा गुजरात की जीत पर आत्ममुग्ध बनी रहती है या हिमाचल के जनादेश से सबक़ लेती है?