■ लघुकथा / विभीषण
■ लघुकथा / विभीषण
【प्रणय प्रभात】
त्रेता में “विभीषण”अपने कल्याण के लिए राम-दल में गया था। जिसे प्रभु की शरण तो मिली ही। बोनस में सिंहासन भी मिल गया। कलजुग में ऐसा नहीं हो पाया। लंका में मेघनाद का डंका बजने और भविष्य को लेकर शंका में पड़ा चाचा विभीषण पग-पग पर भद्द पिटने का रोना लेकर बाहर निकल आया। यह और बात है कि राजपाट का भरोसा तो दूर, एक अदद टिकट या पद तक नहीं मिला। चारा-विहीन बेचारे को घर और बाहर की दुनिया एक सी भीषण लगी। अंततः उसने यू-टर्न लेते हुए मेघनाद की ही शरण ले डाली। तब बाक़ी को भी समझ आ गया कि उस कलजुग में सब मुमकिन है, जहाँ लंका के बाहर भी मारीच और कालनेमियों की भीड़ मौजूद हो।