■ लघुकथा / प्रेस कॉन्फ्रेंस
#लघुकथा
■ प्रेस कॉन्फ्रेंस
【प्रणय प्रभात】
बड़े से हॉल में ख़ासी गहमा-गहमी थी। मौक़ा था एक धनकुबेर द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस का। दो-पकोड़े और चार-चार बिस्किट्स वाली पेपर-प्लेट्स एक तरफ टेबल पर सजाई जा रही थीं। शहर भर के छोटे-बड़े पत्रकार टेबल के आसपास जमा थे। डिस्पोजल में गरमा-गरम चाय का निर्बाध वितरण जारी था। चुस्कियों के बीच पकौड़ों का लुत्फ लिया जा रहा था। कॉन्फ्रेंस के विषय को लेकर घाघ पत्रकार क़यास लगा रहे थे। नौसिखियों में भी ज़बरदस्त कौतुहल था। आख़िरकत कॉन्फ्रेंस शुरू हुई। परिजनों और बंधु-बांधवों के बीच आयोजक ने पहले से तैयार मसौहाथदा पढ़ना शुरू किया। कुछ ही मिनटों में चाय-पकोड़ो के लिए हाथ जोड़-जोड़ कर की गई मनुहारों के पीछे की मंशा पर से पर्दा हट गया। पता चला कि मामला करोड़ों की जमीम पर जबरन कब्जे का है। आरोप आला दर्जे के पावरफुल मंत्री के कद्दावर पट्ठे पर था। पत्रकारों के पेट मे गई पकोड़ियां डकार के साथ हलक से बाहर आने को बेताब थीं। मामला पानी मे रह कर मगरमच्छ से बैर लेने का था। वो भी 75 ग्राम पकौड़ियों और 50 मिलीलीटर चाय के बदले। सौदा वाकई मंहगा था। वो भी पराई ज़मीन की उस लड़ाई के लिए, जो कमाई हुई नहीं हथियाई हुई थी। “चोर के सिर पे मोर” वाली कहावत साकार हो रही थी और पत्रकार बिरादरी का शोर थम चुका था। उन्हें भरोसा था अगले दिन होने वाली नेताजी की प्र्रेस कॉन्फ्रेंस और उपहार के साथ परोसे जाने वाले ड्राय-फ्रूट्स का। जिनके बदले दबंगई की पैरवी में कोई घाटा या जोखिम भी नहीं था। आने वाला साल जो चुनावी था।