Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Mar 2023 · 4 min read

■ #यादों_का_आईना

#यादों_का_आईना
■ बारिश की फुहारें और आल्हा की तानें
【प्रणय प्रभात】
“खटपट-खटपट तेगा बाजे,
चल रही छपक-छपक तलवार।”
“सौलह मन का सेल सनीचर
एक हाथ में लिया उठाय।”
“मरे के नीचे ज़िंदा घुस गए,
ऊपर लोथ लई सरकाय।।”
इस तरह की अतिश्योक्ति पूर्ण किंतु रोमांचित करने वाली ऐसी हज़ारों पंक्तियों से हमारा वास्ता बहुत पुराना है। वर्ष 1980 के दशक में हमनें इन्हें समवेत स्वरों में ख़ूब गाया। वो भी पूरी लय-ताल और रागिनी के साथ। हम यानि चारों भाई-बहिन और हमारी दोनों बुआएँ। मौसम होता था बरसात (सावन-भादों) का। जो बुंदेली पराक्रम के प्रतीक “आल्हा गायन” के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता रहा है। एक समय था जब यह दौर उत्तरप्रदेश के गाँव कस्बों में शबाब पर होता था। सम्भवतः आज भी हो सकता है। इधर मध्यप्रदेश की शौर्य-धरा चंबल क्षेत्र के सरहदी कस्बे (अब शहर) में हम इस सिलसिले कायम रखे हुए थे।
बारिश का दौर शुरू होने से पहलेआल्हा-खंड के अलग अलग हिस्सों को जुटाने के लिए स्थानीय “महेश पुस्तक भंडार” के चक्कर काटना रोज़ का काम होता था। जो खण्ड मिल जाता, उसे तत्काल खरीद कर लाया जाता। दोपहर को खाने-पीने से निपटने के बाद घर के बीच की मंज़िल के एक कमरे में जुटती हमारी महफ़िल। कमरा होता था बुआओं का। खाट पर बैठकर भगोना या थाल बजाते हुए आल्हा गाने का अपना ही मज़ा था। चंदेल वंश की गौरव गाथा पर आधारित आल्हा-ऊदल, मलखान-सुलखान, धांधू-ढेवा के वीरतापूर्ण प्रसंग बदन में रक्त संचार तेज़ कर देते थे। परम वीर भाइयों व परिजनों के पराक्रम की गाथाएं भुजाओं में फड़कन सी पैदा करती थी।
यही दौर था जब सुर-ताल और लय का जीवन मे पदार्पण हो गया। महोबा से दिल्ली, अजमेर के बीच की इन गाथाओं को बेनागा पढ़ने के बाद वीर आल्हा-ऊदल हमारे महानायक बन चुके थे। स्वाभाविक था कि उनके बड़े शत्रु पृथ्वीराज चौहान तब हमारी दृष्टि में धरती के सबसे बड़े खलनायक होते थे। जिनके वास्तविक पराक्रम से हम तब पूरी तरह अनभिज्ञ हुआ करते थे। पांडवों के कलियुगी अवतार माने जाने वाले आल्हा बंधुओं की वीरता से जुड़े प्रसंगों का सबयसे सुंदर और शौर्यपूर्ण वर्णन बुंदेली कवि “मटरूलाल अत्तार” द्वारा रचित खण्ड-काव्यों में होता था। जो 75 पैसे से लेकर साढ़े तीन रुपए तक क़ीमत में उपलब्ध थे। बहुत से ग्रामीण बंधु भी तब इन्हें खरीद कर ले जाया करते थे। एक खण्ड को सस्वर गाते हुए एक बार में पूरा करना परम् संतोष का विषय होता था।
बेतवा की लड़ाई, पिथौरागढ़ की लड़ाई, मछला हरण, इंदल हरण जैसी अनेक गाथाएं तमाम खंडों में हमारे पास संग्रहित थीं। कुरियल उर्फ़ बौना चोर और कुटिल मामा माहिल की करतूतें तब बहुत लुभाती थीं। तब यह इल्म ही नहीं था कि इस कालखंड के चर्चित पात्र कुरियल उर्फ़ बोना चोर का वास्ता हमारे अपने क्षेत्र से रहा। कालांतर में यह जानना बेहद सुखद लगा कि हमारे ज़िले के कराहल कस्बे का नामकरण कुरियल के नाम पर ही हुआ था। जहां उसकी प्राचीन गढ़ी के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं।
महोबा के इतिहास से जुड़ाव युवावस्था में एक बार फिर ताज़ा हुआ, जब हमारे अग्रज कविवर श्री सुदर्शन गौड़ (अब स्मृति शेष) ने अपने दिवंगत पितामह कविश्रेष्ठ स्व. श्री प्रभुदयाल गौड़ द्वारा रचित खण्ड-काव्य “महोबा पतन” के प्रकाशन का बीड़ा उठाया। जिसके संपादक मंडल में एक सदस्य के तौर पर मेरी और अग्रज कवि श्री शंभूनाथ शुक्ल, श्री रामनरेश शर्मा “शिल्पी” तथा श्री स्वराज भूषण शर्मा की भी भूमिका रही। तब इस राजवंश और साम्राज्य के पतन से जुड़े तथ्यों को बारीकी से समझने का अवसर मिला। पुस्तक की भूमिका मुरैना के वयोवृद्ध साहित्यकार व सेवानिवृत्त प्राचार्य श्री गंधर्व सिंह तोमर “चाचा” ने बाक़ायदा “महोबा” का प्रवास करने के बाद लिखी,जो अब हमारे बीच नहीं हैं। कृति का विमोचन भी बेहद गरिमापूर्ण समारोह में हुआ। तत्समय संचालक- निधि एवं लेखा परीक्षक के रूप में ग्वालियर में पदस्थ साहित्यकार डॉ रमेश केवलिया समारोह के मुख्य अतिथि रहे। अध्यक्षता श्री चाचा तोमर ने की। सुप्रसिद्ध गीतकार सुश्री राजकुमारी “रश्मि” और कवियत्री डॉ माधुरी शुक्ला विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ रहीं। सरस्वती वंदना का सुयश मेरी मानसपुत्री करुणा शुक्ला को मिला। जबकि संचालन का मुझे।
आज इस बात को अर्सा बीत चुका है। तमाम महानुभावों की केवल स्मृतियां ही शेष हैं। जिनके साक्षी अग्रज श्री हरिओम गौड़ व श्री शंभूनाथ जी शुक्ल सहित अन्यान्य स्थानीय सहित्यसेवी रहे हैं। बचपन से जवानी तक के एक बड़े हिस्से में पराक्रम की गाथाओं ने काव्य यात्रा का श्रीगणेश वीर रस और ओज के कवि के तौर पर करने के लिए प्रेरित किया। अन्य रसों और विधाओं में सृजन उसके बाद की बात है। अब वो दौर केवल यादों में है। उस दौर के आभास की छाया आप मेरी तमाम रचनाओं में आज भी देख सकते हैं।
आज की पीढ़ी चंदेल राजाओं सहित महोबा के इतिहास से सर्वथा अनभिज्ञ सी है। जिसकी बड़ी वजह शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम चयन में घुसी राजनीति को माना जा सकता है। आल्हा खण्ड अब लुप्तप्रायः हो चुका है। बावजूद इसके तमाम परिवार आज भी उनसे जुड़े किस्सों को अपने मानस में सहेजे हुए हैं। आल्हा गायन की कुछ प्रचलित धुनें आज भी कानों में गूंजती हैं। जो उस गुज़रे हुए दौर की प्रभावशीलता का ही एक प्रमाण है। अमर पात्र आल्हा-ऊदल के किस्से गूगल व यू-ट्यूब जैसे माध्यम आज भी उपलब्ध करा रहे हैं। बशर्ते आप उनमें रुचि रखते हों। जय माता हिंगलाज वाली।
जय शारदा मैया (मैहर वाली), जिनका उल्लेख उक्त महग्रन्थ में कुलदेवी के रूप में अनेकानेक बार हुआ है। हो सके तो एक बार फिर कोशिश करिएगा लुप्त होती जा रही आल्हा-गायन की परंपरा को पुनर्जीवित करने की।।
★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 333 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
■ जीवन सार
■ जीवन सार
*Author प्रणय प्रभात*
🌿⚘️प्राचीन  मंदिर (मड़) ककरुआ⚘️🌿
🌿⚘️प्राचीन मंदिर (मड़) ककरुआ⚘️🌿
Ms.Ankit Halke jha
जो बीत गया उसके बारे में सोचा नहीं करते।
जो बीत गया उसके बारे में सोचा नहीं करते।
Slok maurya "umang"
सीख ना पाए पढ़के उन्हें हम
सीख ना पाए पढ़के उन्हें हम
The_dk_poetry
कहमुकरी
कहमुकरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
कुछ लोग होते है जो रिश्तों को महज़ इक औपचारिकता भर मानते है
कुछ लोग होते है जो रिश्तों को महज़ इक औपचारिकता भर मानते है
पूर्वार्थ
तुम्हारे जाने के बाद...
तुम्हारे जाने के बाद...
Prem Farrukhabadi
कोई साया
कोई साया
Dr fauzia Naseem shad
*सखी री, राखी कौ दिन आयौ!*
*सखी री, राखी कौ दिन आयौ!*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मर्चा धान को मिला जीआई टैग
मर्चा धान को मिला जीआई टैग
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
रिश्ता ऐसा हो,
रिश्ता ऐसा हो,
लक्ष्मी सिंह
कब हमको ये मालूम है,कब तुमको ये अंदाज़ा है ।
कब हमको ये मालूम है,कब तुमको ये अंदाज़ा है ।
Phool gufran
सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे भवन्तु सुखिन:
Shekhar Chandra Mitra
रिश्तों को साधने में बहुत टूटते रहे
रिश्तों को साधने में बहुत टूटते रहे
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
gurudeenverma198
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पानी  के छींटें में भी  दम बहुत है
पानी के छींटें में भी दम बहुत है
Paras Nath Jha
*भारत माता के लिए , अनगिन हुए शहीद* (कुंडलिया)
*भारत माता के लिए , अनगिन हुए शहीद* (कुंडलिया)
Ravi Prakash
कविता :- दुःख तो बहुत है मगर.. (विश्व कप क्रिकेट में पराजय पर)
कविता :- दुःख तो बहुत है मगर.. (विश्व कप क्रिकेट में पराजय पर)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
जाने के बाद .....लघु रचना
जाने के बाद .....लघु रचना
sushil sarna
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
VEDANTA PATEL
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
Aarti sirsat
****शिक्षक****
****शिक्षक****
Kavita Chouhan
बाल दिवस पर मेरी कविता
बाल दिवस पर मेरी कविता
Tarun Singh Pawar
हिंदुस्तान जिंदाबाद
हिंदुस्तान जिंदाबाद
Mahmood Alam
प्रकृति के फितरत के संग चलो
प्रकृति के फितरत के संग चलो
Dr. Kishan Karigar
"अगर"
Dr. Kishan tandon kranti
समय गुंगा नाही बस मौन हैं,
समय गुंगा नाही बस मौन हैं,
Sampada
......?
......?
शेखर सिंह
एक मुक्तक
एक मुक्तक
सतीश तिवारी 'सरस'
Loading...