■ पैग़ाम : पड़ौसी को।।
■ फिर तांडव पे बाध्य न कर!
【प्रणय प्रभात】
चीन चील है माना लेकिन,
हिन्द नहीं गौरैया सुन ले।
झूठमूठ का भ्रम मत पाले,
सुन ले छोटे भैया सुन ले।।
सोच रहा उसके बल-बूते,
इस दंगल में पार पाएगा।
कितनी बार ठुकेगा बतला,
कितनी बार मार खाएगा??
खाने-पीने तक के लाले,
माँग रहा दुनिया से भिक्षा।
झूठे भ्रम से उबर बावले,
कुछ अतीत से ले ले शिक्षा।।
चैन से जी ले, जी लेने दे,
अपना रोग असाध्य न कर,
समाधिस्थ डमरूधारी को,
फिर तांडव पे बाध्य न कर।।
【नीच “चीन” की काग़ज़ी पतंग के “नापाक” पुछल्ले को हिंदुस्तान की चेतावनी】