■ दिल की बात : आपके साथ
#व्यंग्य
■ दिल की बात< दिमागों के साथ
【प्रणय प्रभात】
"मदांध नामचीनों पर मरने वालों!
नाम तो अपना भी चीन तक है। सच्चे भारतीय जो हैं आखिर। अगर चाहे जहाँ सर झुका लेते, चाहे जिसके तलवे सहला पाते, दुम हिलाने का हुनर जानते, छुटभैये मठाधीशों को गॉड-फादर समझ पाते और झूठी तारीफ़ों के पुल बांधने आते तो शायद आपको भी लुभाते। नाम चीन ही क्या अमेरिका, फ़्रांस, जापान, रूस, जर्मनी, ब्रिटेन तक भी हो जाता। फिर आप सरीखों से काहे को होता कोई नाता? आपकी चकोर-दृष्टि में हम दूर गगन के नूर वाले चाँद होते। स्वाति नक्षत्र के जल-बिंदु की तरहः आपके विकल मन को और व्याकुल बनाते। ढूंढे से हाथ आना तो दूर, नज़र तक न आते। रहा सवाल दिखावे की ऊपरी चमक-दमक का, तो उसके लिए ना ओप्पो-वीवो का मोबाइल है, ना ही कोई एडिटिंग एप्प। इसका न कोई गिला है न शिकवा
क्योंकि, ऊपर वाले ने जो भी दिया है ना! वो आज भी करोड़ों को नसीब नहीं है। समझे…?
नहीं समझे तो फुर्सत में चैन से बैठकर आराम से समझने की कोशिश करना। शायद समझ को थोड़ी सी समझ आ जाए। जय राम जी की। 😊