■ तेवरी / कक्का
■ तेवरी / कक्का
(ठेठ देशी ठाठ की एक ग़ज़ल)
【प्रणय प्रभात】
■ गेहूँ संग गुड़ लइयो कक्का!
कल बंगले पे अइयो कक्का।।
■ होइहि वहि जो राम रचि राखा।
मोकू मत समझइयो कक्का।।
■ बच्चे आवेंगे भादों में।
गुड़धानी भिजवइयो कक्का।।
■ कुप्पी, खुरपी घर से लइयो,
पेड़ लगा के जइयो कक्का।।
■झूठ-मूठ में शकल रुआँसी।
मोहे मत दिखलइयो कक्का।।
■ कित्ता सोना धरती उगली?
सब सच-सच बतलइयो कक्का।.
■ देसी घी के दाल चूरमा.
खेत बुला खिलवइयो कक्का।
■ आला अफसर कछु भी पूँछें।
कोरी नाड़ हिलइयो कक्का।।
■ बिसर जाये यदि सारी बातें।
सूरत नहीं दिखइयो कक्का।।
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【मुंशी प्रेमचंद जी के युग को जीवंत रखे है नौकरशाही आज भी देश भर में】