■ जय जय शनिदेव…
#लघुकथा-
■ डर का नाम मुहब्बत
【प्रणय प्रभात】
हनुमान जयंती की बधाई का संदेश ग़लती से उसे भी चला गया, जिसे अपनी ग़लती कभी ग़लती से भी ग़लती नहीं लगती। हाँ-हाँ, उसी थोथी अदा और अकड़ के मारे।
बहरहाल, उत्तर न आना था और ना ही आया। दो दिन बाद ग़लती से ऐसी ही ग़लती फिर हो गई। इस बार सुप्रभात का संदेश जल्दबाज़ी के चक्कर में चला गया। इससे पहले कि ग़लती सुधारते हुए उसे हटा पाते, जवाब स्क्रीन पर था। प्रणाम की पांच इमोजी के ऊपर लिखा था- “जय जय शनिदेव।”
तत्काल समझ में आ गया कि मुहब्बत की मीनार कलियुग में डर की नींव पर खड़ी होती है। तभी तो हनुमान जी से न डरने वाले अकड़ के मारे भी शनिदेव से ख़ौफ़ खाते हैं। ख़ास कर वो जिन्हें हनुमान लला की कला का अता-पता न हो। फ़िलहाल, जय हो शनिदेव आपकी। असर तो दिखाया कुछ।।
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■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)