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8 Dec 2022 · 1 min read

■ गीत / अपना जीवन. माना….!!

■ गीत :–
अपना जीवन. माना….!!
【प्रणय प्रभात】

जीवन अपना माना
बहुआयामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।

■ सहा गर्भ में जो कुछ वो सब भूल गया,
बाहर आकर के पलने में झूल गया।
शैशव में घुटनों पर रेंगा तक,
लाड़-प्यार और पोषण पाकर फूल गया।
बाल्यकाल तक उर में अंतर्यामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।

■ वय किशोर, तरुणाई में बस जोश रहा,
भले-बुरे का नहीं तनिक भी होश रहा।
यौवन में बस भोग विलास पसंद रहे,
मनचाहा मिलने पर ही संतोष रहा।
नाम हुआ कम अधिक हुई बदनामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।

■ प्रौढ़ हुए तब तक केवल संचय भाया,
राग-द्वेष, छल-दम्भ मोह ने भरमाया।
वृद्ध देह फिर रोगों का घर-द्वार बनी,
पड़े-पड़े सोचा क्यां खोया क्या पाया?
कल की खूवी आज लगे बस ख़ामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।”
©® प्रणय प्रभात

Language: Hindi
1 Like · 165 Views
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