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23 Dec 2022 · 1 min read

■ क़तआ (मुक्तक)

■ बदले हुए दौर में….
ख़तरा दुश्मनों से कम दोस्तों से ज़्यादा है। बाहर वालों से नहीं, घर वालों से है। पराए एक बार रहम कर भी दें। अपने शायद नहीं। सब तैयार बैठे हैं पूरे अहम के साथ आपका वहम चकनाचूर करने के लिए।
#प्रणय_प्रभात

Language: Urdu
1 Like · 306 Views
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