Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Dec 2022 · 5 min read

■ एक यात्रा वृत्तांत / संस्मरणR

#यादों_का_झरोखा :-
■ पहली बारात के हम बाराती
★ यात्रा एक, अनुभव अनेक
【प्रणय प्रभात】
बात 1985 की है। जब मैं पहली बार खुद के बूते किसी बारात का हिस्सा बना। परिजनों के बिना किसी बारात में जाने का पहला मौका था। लिहाजा उसे भुला पाना संभव ही नहीं। बारात थी नगरी के अभिभाषक महेंद्र जैन की। जो उस दौर के प्रसिद्ध संस्थान ओसवाल भोजनालय के संचालक अरुण ओसवाल के लघु भ्राता हैं। संयोगवश मैं उनके अनुज कर सलाहकार गजेंद्र जैन का पुराना छात्र और बीकॉम द्वितीय वर्ष का विद्यार्थी था। अपने मोहल्ले के बाल सखा, पड़ोसी और सहपाठी रमेश गुप्ता (नागदा वाले) के साथ। हालांकि मेरा बचपन ओसवाल परिवार के पड़ोस में ही मोतीलाल सुनार के बाड़े में बीता था। परिवार के साथ सम्बन्ध बरसों पुराने व पारिवारिक भी थे। किंतु बारात का आमंत्रण गजेंद्र भाई साहब के चेले के तौर पर मिला था। यात्रा श्योपुर से इंदौर की थी। तब इंदौर का केवल नाम भर सुना था। खटारा वाहनों के उस दौर में लग्जरी बस में सवारी का पहला मौका मिलने जा रहा था। एबी रोड जैसे राजमार्ग पर यात्रा की कल्पना बेहद रोमांचक थी। उससे पहले कोटा, जयपुर, शिवपुरी और ग्वालियर की ही यात्राएं की थीं। संयोग से सभी रास्ते तब ऊबड़-खाबड़ व एकांगी हुआ करते थे। बहरहाल, बारात में जाने का उत्साह सातवें आसमान पर था। आमंत्रण के तुरंत बाद बाज़ार से एक एयरबैग लाया गया। दो जोड़ी नए कपड़े सिलवाए गए। जूते-मौजे भी बिल्कुल नए। चार्ली का इंटीमेट स्प्रे और हैलो का शेम्पू ही उन दिनों सहज उपलब्ध था। वो भी पवन फैंसी स्टोर पर। जहां उधारी की सुविधा हम जैसे तमाम ग्राहकों को उपलब्ध थी। संयोग से मामला माह के पहले हफ़्ते का था। पापा ने 100 रुपए मांगने पर 150 पकड़ाए। कड़कड़ाते हुए दो नोट 50-50 के। दो 20-20 के और एक नोट 10 का। हिदायत वही कि बच जाए तो लौटा देना। ये और बात है कि लौट कर घर आने तक 140 रुपए जेब में थे। जो ना मांगे गए और ना ही लौटाए गए। कुल मिला कर तैयारी पूरी थी। बेसब्री से इंतज़ार था सिर्फ रवानगी का।
आख़िरकार 07 फरवरी का वो सुखद दिन आ ही गया। बस श्री रामतलाई हनुमान मंदिर के बाहर चौगान में लग चुकी थी। सामान हाथ ठेलों पर लद कर वहां पहुंच चुका था। उन दिनों श्योपुर एक कस्बा ही था। जहां हाथ ठेला इकलौता पब्लिक ट्रांसपोर्ट होता था। सारा सामान सेट कराने से पहले हम दोनों मित्रों ने कन्डक्टर सीट के पीछे वाली डबल सीट कब्ज़े में कर ली थी। यात्रा को आरामदायक व यादगार बनाने की मंशा से। एक आशंका सीट से हटाकर पीछे भेजे जाने की भी थी। लिहाजा एक डबल सीट अलग से रोकी जा चुकी थी। जिसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। ज़ोरदार उल्लास के बीच श्योपुर से बस रवाना हुई। बस का पहला पड़ाव शिवपुरी था। सभी के रात्रि भोजन की व्यवस्था टू स्टार पुलिस अधिकारी योगेश गुप्ता के आवास पर थी। जो अरुण भाई साहब के मित्र थे और शिवपुरी से पहले श्योपुर में पदस्थ रह चुके थे। आत्मीय माहौल में किसी पुलिस अधिकारी के घर भोजन तब गर्व का आभास कराने वाला था। भोजन के बाद बस ने इंदौर के लिए कूच किया। कुछ ही देर बाद बस की उछलकूद अचानक बन्द हो गई। पता चला कि हाई-वे आ गया है। हाई-वे की पहली यात्रा का अनुभव लेने की बात थी। लिहाजा नींद का नामो”-निशान तक आंखों में नहीं था। गुना में चाय-पानी के बाद आगे की यात्रा शुरू हुई। अब नींद के झोंके सोने पर मजबूर कर रहे थे। पता नहीं कब गुदगुदी सीट पर आंख लग गई। अलसुबह शोरगुल से नींद टूटी तो पता चला कि बस मक्सी के एक शानदार से ढाबे पर रुकी थी। हम आनन-फानन में नीचे उतरे। प्राथमिकता में था राजमार्ग का साक्षात दर्शन, जो बस में बैठकर रात के अंधेरे में नहीं हो पाया था। दोहरी चौड़ी और चमक बिखेरती काली सड़क ने मंत्रमुग्ध किया। हाई-वे के शानदार ढाबे का दीदार भी पहली बार ही हुआ था। चाय-नाश्ते से फारिग होने के बाद सब फिर से बस में सवार हो चुके थे। वर देवता के परम मित्र नारायण दास गर्ग और रमाकांत चतुर्वेदी (अब स्मृति शेष) सभी के बीच आकर्षण का प्रमुख केंद्र थे। उनकी हंसी-ठिठोली और हाज़िर-जवाबी माहौल को सरस् व रोचक बनाए हुए थी। आख़िरी पड़ाव इंदौर ही था। खिड़की से इस महानगर की झलक मन लुभा रही थी। अंततः बस एक विशाल भवन के बाहर रुकी। जो रामबाग क्षेत्र की दादाबाड़ी के बड़े से परिसर में स्थित था। सभी बारातियों का सामान सम्मान के साथ उतारा गया। तब व्हीआईपी जैसा शव्द बहुत प्रचलित नहीं था, मगर सभी का आभास लगभग वैसा ही था। फरवरी के गुलाबी मौसम में मालवा की ठंडक अपनी रंगत में थी। स्नान के लिए गर्म पानी अलग से उपलब्ध था। वधु पक्ष की संपन्नता और प्रभाव की झलक व्यवस्थाओं से मिल रही थी। बावजूद इसके घरातियों का मृदु और विनम्र व्यवहार आनन्द की अनुभूति करा रहा था। शायद यह मालवांचल की अतिथि सत्कार परम्परा से भी प्रेरित था। घरातियों की ओर से एक रोचक शर्त भी स्वल्पाहार के समय रखी गई। शर्त गरमा-गरम समोसे को लेकर थी। बताना यह था कि उनमें भरा क्या गया है? सब “आलू” पर एक-राय थे। सबका जवाब ग़लत निकला। दरअसल समोसे कच्चे केले से निर्मित थे। तब पहली बार जाना कि जैन मत में “आलू” का सेवन अधिकांश लोग नहीं करते। इसके बाद दिन का भोजन विशुद्ध मालवी ज़ायका लिए हुए था। तब जानने को मिला कि राजस्थानी संस्कृति से अनुप्राणित हमारे क्षेत्र में प्रचलित “बाटी” के गौत्र का एक व्यंजन “बाफला” भी होता है। शाम के भोजन के साथ बारात, विवाह आदि की रस्म भव्य और स्मरणीय रही। कुल मिलाकर बहुत कुछ पहली बार जानने को मिला। बहुत से अनुभव प्रथम बार हुए। आयु-भेद जैसा कोई बंधन 09 फरवरी को श्योपुर वापसी तक नहीं दिखा। लिहाजा पूरा लुत्फ़ निर्बाध बना रहा। इसके बाद साढ़े तीन दशक के सार्वजनिक जीवन में तमाम बारातों में शरीक़ होने का अवसर मिला। सैकड़ों समारोहों में भागीदारी जीवन का हिस्सा रही। लेकिन जो बात श्योपुर से इंदौर की इस यात्रा में थी, वो दोबारा कभी महसूस नहीं हुई। मज़ेदार बात यह है कि 1985 में अरुण भाई साहब के सामने जाने का साहस नहीं होता था। वजह उम्र के बीच का अच्छा-खासा अंतर था। कालांतर में हम पत्रकारिता के क्ष्रेत्र में सक्रिय होने की वजह से कर्मक्षेत्र के परम मित्र हो गए। यह अलग बात है कि हास-परिहास के बावजूद सम्मान व नेह का भाव आज भी बना हुआ है। हायर सेकेंडरी से बीकॉम तक गुरु (ट्यूटर) रहे गजेंद्र भाई साहब से बाद में सम्बंध गुरु-शिष्य परम्परा से इतर मित्रवत हुए। आदर का भाव सदैव विद्यमान रहा, जो आज भी बरक़रार है। इससे भी ज़्यादा रोचक बात यह है कि जिनकी बारात में गए थे उनके सुपुत्र युवा भाजपा नेता व कर सलाहकार नकुल जैन अगली पीढ़ी के होने के बाद भी हमारी मित्रमंडली का हिस्सा हैं। जो आगामी 08 दिसम्बर को दाम्पत्य जीवन मे पदार्पण करने वाले हैं। अब आप खुद समझ लीजिए कि हमारी सार्वभौमिकता व सर्वकलिकता कितनी गहरी रही होगी। मामला 37 साल पहले का है। तथ्यों में कुछ भूल-चूक हो सकती है। भाव आज भी उल्लास से भरे हुए हैं। इस प्रवास का एक-एक दृश्य ज़हन में है। जिसके रंग आज भी उतने ही चटख हैं। उम्मीद करता हूँ कि शब्द-चित्र के रूप में यह यात्रा वृत्तांत आपको पसंद आएगा। जय जिनेन्द्र।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
【मालवा_हेरॉल्ड में प्रकाशित एक दिलचस्प संस्मरण】
Arun Oswal

Language: Hindi
1 Like · 189 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सितारे अपने आजकल गर्दिश में चल रहे है
सितारे अपने आजकल गर्दिश में चल रहे है
shabina. Naaz
जवानी
जवानी
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
मेरी निजी जुबान है, हिन्दी ही दोस्तों
मेरी निजी जुबान है, हिन्दी ही दोस्तों
SHAMA PARVEEN
चाय ही पी लेते हैं
चाय ही पी लेते हैं
Ghanshyam Poddar
बाल कविता: चिड़िया आयी
बाल कविता: चिड़िया आयी
Rajesh Kumar Arjun
सुंदरता विचारों में सफर करती है,
सुंदरता विचारों में सफर करती है,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Us jamane se iss jamane tak ka safar ham taye karte rhe
Us jamane se iss jamane tak ka safar ham taye karte rhe
Sakshi Tripathi
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
".... कौन है "
Aarti sirsat
शब्दों की अहमियत को कम मत आंकिये साहिब....
शब्दों की अहमियत को कम मत आंकिये साहिब....
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
$úDhÁ MãÚ₹Yá
शिक्षक हमारे देश के
शिक्षक हमारे देश के
Bhaurao Mahant
नशा
नशा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
जिसने हर दर्द में मुस्कुराना सीख लिया उस ने जिंदगी को जीना स
जिसने हर दर्द में मुस्कुराना सीख लिया उस ने जिंदगी को जीना स
Swati
नई नसल की फसल
नई नसल की फसल
विजय कुमार अग्रवाल
ज़माने की निगाहों से कैसे तुझपे एतबार करु।
ज़माने की निगाहों से कैसे तुझपे एतबार करु।
Phool gufran
बादलों को आज आने दीजिए।
बादलों को आज आने दीजिए।
surenderpal vaidya
दोहे तरुण के।
दोहे तरुण के।
Pankaj sharma Tarun
बलिदानी सैनिक की कामना (गीत)
बलिदानी सैनिक की कामना (गीत)
Ravi Prakash
फेसबुक
फेसबुक
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
3247.*पूर्णिका*
3247.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
■ जीवन मूल्य।
■ जीवन मूल्य।
*Author प्रणय प्रभात*
मुझको कभी भी आजमाकर देख लेना
मुझको कभी भी आजमाकर देख लेना
Ram Krishan Rastogi
कई युगों के बाद - दीपक नीलपदम्
कई युगों के बाद - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
💐अज्ञात के प्रति-34💐
💐अज्ञात के प्रति-34💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
क्या हमारी नियति हमारी नीयत तय करती हैं?
क्या हमारी नियति हमारी नीयत तय करती हैं?
Soniya Goswami
"इश्क़ वर्दी से"
Lohit Tamta
दस्तक
दस्तक
Satish Srijan
भरोसा
भरोसा
Paras Nath Jha
"उतना ही दिख"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...