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11 Dec 2022 · 4 min read

■ आलेख / प्रयोगवाद के जनक महाकवि “मुक्तिबोध”

■ मेरी दृष्टि में मुक्तिबोध और उनकी सृजनशीलता:-
★ कृतित्व एवं व्यक्तित्व का विश्लेषण
【प्रणय प्रभात】

तत्कालीन परिस्थितियों में देशकाल और वातावरण से प्रभावित एक भावुक किंतु मुखर रचनाकार जो कभी भावों के उद्वेग तक पहुंचने की सामर्थ्य रखता है तो कभी स्वतः भावशून्य होने का माद्दा रखता है।
-प्रेमचंद की अमरकथा गोदान का होरी जो परम्पराओं के निर्वाह पर बाध्य किए जाने से पीड़ित है या फिर फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कहानी ठेस का नायक सिरचन जो ठसकते और सनकते देर नहीं लगाता।
-अर्जित से अतृप्त महत्वाकांक्षाओं से परिपूर्ण एक असंतुष्ट व्यक्तित्व जिसकी वेदनापूर्ण छटपटाहट कभी भूरी-भूरी खाक धूल पर दृष्टिपात करती प्रतीत होती है तो कभी चांद का मुंह टेढ़ा महसूस करने लगती है।
-नाशदेवता, ब्रह्मराक्षस, लकड़ी का रावण, बैचेन चील जैसे शीर्षकों और प्रतिमानों पर अटल-अनिमेष भावों के साथ केन्द्रित एक सृजनधर्मी जो कभी खुद को अंधेरे में पाता है तो कभी दुपहरी को जिन्दगी पर हावी देखता है।
-एक अंर्तकथा का लेखक जो कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं जैसी चुनौती देने से नहीं चूकता और अपने कल और आज को समाज के समक्ष रखते हुए बारम्बार अपने असंग बबूलपन की चाह करने तक से बाज नहीं आता।
-खुद को लोगों से दूर बताते हुए अपनी भूलों और गलतियों को सहर्ष स्वीकारने का साहस रखने वाला एक रचनाकार जिसकी लेखनी कभी पूंजीवादी समाज को पारिभाषित करने पर भी व्यग्र हो उठती है।
-रात के समय अकेले तारों की चाल पर चिंतन करने वाला कवि जिसके अंतर्मन में अपने दिमागी गुहान्धकार और उसके ओरांग-उटांग जैसे रहस्यमयी प्रतिमान स्वतः उपजते और विलुप्त होते पाए जाते हैं।
-मुझे कदम-कदम पर, विचार आते हैं, बहुत दिनों से कि मैं उनका ही होता जैसे अपूर्ण शीर्षक अपनी प्रतिनिधि कविताओं को देने वाला एक पूर्ण कवि जो मृत्यु और कवि के साथ जीवन की पूर्णता का पटाक्षेप करता है।
-काठ का सपना लिए सतह से उठते आदमी की जिजीविषा के साथ नई कविता के आत्मसंघर्ष और महाकवि जयशंकर प्रसाद की कालजयी कृति कामायनी पर पुनर्विचार प्रस्तुत करते हुए विवाद में वाद खोजने वाला कवि।
-नए साहित्य के सौन्दर्य शास्त्र को चर्चा का विषय बनाते हुए समीक्षा की समस्याओं को रेखांकित करने तथा एक साहित्यिक की डायरी का लेखन करते हुए भारत के इतिहास व संस्कृति पर चिंतन को बल देता रचनाकार।
(उपरोक्त वाक्यों में मुक्तिबोध जी की प्रतिनिधि रचनाओं और संकलनों के नाम समाहित करने का प्रयास किया गया हैं)
*** मुक्तिबोध के काव्य पर मेरी अपनी मौलिक परिभाषाऐं:-
+ बधिरों की बस्ती में मूकों का आर्तनाद है।
+ रेत के ढेर में गर्दन घुसाए शुतुरमुर्ग का चिंतन है।
+ बाढ़ की उतंग लहरों पर नौका के संतुलन का प्रयास हैं।
+ सुंदर मुख पर तेजाबी प्रहार और कुरूप चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी है।
+ गहन मौन और कोलाहल के बीच ध्वनि की छटपटाहट है।
+ अप्रतिम सौन्दर्य में कुरूपता का बोध और विदू्रप में सुंदरता की खोज है।
+ सामर्थ्यवान की छाती पर असमर्थता की अठखेली है।
+ अव्यवस्थाओं के अंकपाश में जकड़ी व्यवस्थाओं की सिसकी है।
+ अमावस्या के घोर तम के बीच एक प्रकाशवान नक्षत्र की चाह है।
+ दमकते हुए दिवसकाल में जुगनू को आभावान दर्शाने का संघर्ष है।
+ कांच की किर्चियों के बीच मणियों की तलाश करती उंगलियां हैं।
+ प्रवृत्ति रूपी घावों को संवेदना के साथ कुरेदने व भरने का हुनर है।
+ अपूर्णता में पूर्णता जबकि पूर्णता में अपूर्णता का आभास है।
+ युगीन परिस्थितियों पर दृष्टिपात के साथ अतीत व आगत की समीक्षा है।
(परिभाषाओं का उपयोग लेखन व शोध में नाम के साथ किए जाने का आग्रह है)
*** संक्षिप्त व तात्कालिक मनन व चिंतन का निष्कर्ष:-
तात्कालिक आनंद और त्वरित प्रभाव की चाह रखने वाले मौजूदा रसिक समाज के लिए मुक्तिबोध की कविताऐं ना तो बौद्ध-गम्य हैं और ना ही सहज-ग्राह्य। मात्रिक और वार्णिक कथानकों, परम्परागत वृत्तांतों और आख्यानों से अलंकृत काव्य के कनरसियों और पारखियों के लिए मुक्तिबोध की काव्य-यात्रा के माइल-स्टोन उन अतिप्राचीन शिलालेखों की तरह हैं जिनकी लिखावट को समझने तथा उनके अभिप्राय तक पहुंचने की राह अत्यधिक दुश्वार है। आस्था के प्रतीकों को अपनी कल्पनाशीलता के बलबूते आकार, स्वरूप और श्रंगार देने वाले महान चित्रकार राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित देवी-देवताओं, महान शासकों, विभूतियों के काल्पनिक चित्रों में सौंन्दर्य और सत्य की झलक तलाशने वालों की भीड़ और लियेनार्डो द विंची की अद्वितीय कृति मोनालिसा की अनुपम मुस्कान के रहस्य को भांपने में अरसा गंवा देने वाले कलाप्रेमियों के समूह के बीच खड़ी नजर आती है मुक्तिबोध की कविताऐं, जिनमें भाव कहीं परत-दर-परत एक दूसरे पर हावी होते प्रतीत होते हैं तो कहीं पतंग के अनायास टूटने या कटने के बाद खींचे गए मांझे के उलझाव जैसे दृष्टिगत होते हैं। धागे के उलझे हुए गुच्छे का एक छोर पकड़कर दूसरे छोर की तलाश में किया जाने वाला दूभर प्रयास मुक्तिबोध की काव्ययात्रा से अधिक जटिल व श्रमसाध्य नहीं है। बावजूद इसके तमाम मोड़ ऐसे भी आते हैं जहां मुक्तिबोध की कविता आम आदमी की पीड़ा और बैचेनी को अपना स्वर देने तथा उसे मुक्ति की कामना के साथ मुक्ति का बोध कराने में कामयाब होती है।
#आत्मकथ्य-
हमारी श्योपुर नगरी को अपनी जन्म-स्थली के रूप में गौरवान्वित करने वाले नई कविता के जनक व सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय कृत तार-सप्तक में अग्रणी रचनाकार के रूप में सम्मिलित प्रयोगवाद के महाकवि स्व. श्री गजानन माधव मुक्तिबोध जन्म 13 नवम्बर 1917, प्रयाण 11 सितम्बर 1964 के रचना-धर्म व काव्य-संसार पर एक आलेख, जो मैने उनके पुण्य-स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में तात्कालिक तौर पर लिखा था, यहां उन सुधिजनों, साहित्यप्रेमियों, शोधार्थियों और हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत है जो महाकवि मुक्तिबोध के कृतित्व एवं व्यक्तित्व से सार-संक्षेप के रूप में अवगत होना चाहते हैं। महाकवि मुक्तिबोध के प्रयाण दिवस पर साहित्यकार की एक परिभाषा भी देना चाहता हूं जिसे अनुभवों की कसौटियों पर परखते हुए मान्यता दिए जाने का अनुरोध है:-‘‘सृजनधर्मी अपने युग का जीवित शहीद होता है क्योंकि वो तिल-तिल कर मरते हुए समाज और देश के लिए न्यौछावर कर देता है अपना सब कुछ।’’
【हिंदी साहित्य के समस्त विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए उपयोगी व संग्रहणीय】
©® आलेख – प्रभात ‘प्रणय’
सम्पर्क-सूत्र:- 08959493240, 09425739279
E-mail – prabhatbhatnagar3@gmail.com

Language: Hindi
1 Like · 179 Views
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