••••••••• ☆ रे मन ☆•••••••••
रे मन! !
तू निराश न हों ।
सुख-दुख के फूलों को चुनकर
गले का हार बना लो ,
रे मन !
तू निराश न हों ।
अंकुर की तरह माटी मे दबकर
बट विशाल बनो,
रे मन !
तू निराश न हों ।
वह हर्ष नही अपकर्ष है
जब उत्कर्ष की अनुभूति न हो ,
रे मन !
तू निराश न हों ।