ढ़ाल
जब मंडराएंगे युद्ध के बादल
और खोले जायेंगे शस्त्रागार
व्यस्त होंगे सभी युद्ध की तैयारियों में
तब मैं लिखूंगा एक लम्बी कविता
मेरे शब्दों में भी होगा विद्रोह तानाशाहों के विरुद्ध
पर मेरे लिखे शब्द किसी पर प्रहार नहीं करेंगे,
न हीं होंगे वो तीर और तलवार सरीखे नुकीले और धारधार
वो होंगे थोड़े से चपटे और थोड़े से गोल
उनसे बनाऊंगा मैं एक मजबूत ढाल
जब युद्ध होगा तो मैं अपनी ढाल आगे कर दूंगा
उस से टकराकर टूट जायेंगे सारे नुकीले और धारदार हथियार
और ढाल की आड़ में मैं बचा लूंगा
एक प्रेमी जोड़ा
छोटे बच्चे को दूध पिलाती माँ
एक पेड़ पर खेलती छोटी सी गिलहरी
और फूलों पर मंडराती कुछ तितलियाँ
जब युद्ध होगा समाप्त
तो फिर से एक प्रेम भरा जीवन बसाने के
मेरे पास पर्याप्त मात्रा में इंसानियत और उसके रखवाले होंगे !