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11 Oct 2020 · 1 min read

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी गर तुम हमकदम, होती तो क्या बात थी।
मेंरे ख़यालो कि बन सनम, होती तो क्या बात थी।।
ना क़दर बन कर भी तुम, चाहती मुझको हमेशा।
बेक़दर सी सांस भी कम, होती तो क्या बात थी।।

हर पांव में छाले पड़े हैं, हर जीभ पर है कड़वाहटें।
ज़िन्दगी इतनी सितमगर, न होती तो क्या बात थी।।
कोई तरसता धूप को, तो कोई तरसता बरसात को।
हर एक को कुदरत की कदर, होती तो क्या बात थी।।

चाहतों में शर्त नही कि, हर चाहतों से चाहत मिले।
बस सोच में मेंरे रहबहर, होती तो क्या बात थी।।
ज़िन्दगी किसकी कटीली, राह से है कितनी गुज़री।
इस बात का न कोई जिकर, होती तो क्या बात थी।।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २०/०२/२०२०)

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 268 Views
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