ज़िन्दगी मेहरबान है तो क्या
ज़िन्दगी मेहरबान है तो क्या
मौत इक इम्तिहान है तो क्या
भूल जा ज़ख़्म मेरे तू ऐ दोस्त!
ये तिरा योगदान है तो क्या
कह नहीं सकता बात मौक़े पर
मेरे मुँह में ज़ुबान है तो क्या
हूँ लपेटे ग़मों की चादर मैं
तू अगर शादमान है तो क्या
ज़ख़्म तो भर गया है अब यारो!
पीठ पर यूँ निशान है तो क्या