ज़िन्दगी में चलती है यूं आंधियां कभी कभी
ज़िन्दगी में चलती है यूं आंधियां कभी कभी
उड़ा के ले जाती है ऐसे मर्ज़ियाँ कभी कभी।।
सफ़र दर सफ़र गुज़रता जा रहा ये कारवाँ
तुम बसा लो मुहब्बत का आशियाँ कभी कभी।।
अजीब सी उलझनें उलझी हुई है ज़िन्दगी में
अब कोई रख जा कहानियाँ कभी कभी।।
वो बैठे बैठे देख रहा ज़िन्दगी में सब्ज़ बाग़
गुल उड़ा के ले गईं हैं तितलियाँ कभी कभी।।
सुना है वो सुनता नही अब कुछ मुहब्बत में
आते जाते रख जा निशानियाँ कभी कभी।
तमन्नाओ का अम्बार लागए तुम बैठे हो
ज़िन्दगी में जियो अपनी मर्ज़ियाँ कभी कभी।।
मेरे अश्क़ मुझसे ही अब रोने का सबब पूछे
आकिब’दे दे इश्क़ की अर्ज़ियाँ कभी कभी।।
-आकिब जावेद