ज़िन्दगी बन कर कहानी रह गई
ज़िन्दगी बन कर कहानी रह गई
ज्यूँ बुढ़ापे सी जवानी रह गई
दर दरीचे खोल दे घर बार के
अब नहीं बिटिया सयानी रह गई
नाव कागज़ की चलायेंगे कहाँ?
देख गंगा तक बे-पानी रह गई
झूठ अपनी शान में मदहोश है
कटघरे में सच बयानी रह गई
पेट भर कर और का भूखे मरें
इस वतन में यूँ किसानी रह गई
बात मत कर अब ज़मीरों की यहाँ
जब तवायफ राज-रानी रह गई
लाख बातें कर के आया हूँ उसे
अब भी कुछ उसको सुनानी रह गई
मौज में दुनिया है , बामुश्किल मगर
मुददतों से, बस दिवानी रह गई