ज़िन्दगी आजकल
ज़िन्दगी आजकल
आबशार-ए-ग़ज़ल
क्यों बनाते रहे
रेत के हम महल
अम्न हो चार सू
क्यों न करते पहल
देखकर हादिसे
दिल गया है दहल
इक ख़ुशी पाने को
जी रहा है मचल
गुनगुनाएं भ्रमर
खिल रहा है कमल
ज़िन्दगी आजकल
आबशार-ए-ग़ज़ल
क्यों बनाते रहे
रेत के हम महल
अम्न हो चार सू
क्यों न करते पहल
देखकर हादिसे
दिल गया है दहल
इक ख़ुशी पाने को
जी रहा है मचल
गुनगुनाएं भ्रमर
खिल रहा है कमल