ज़मज़म देर तक नहीं रहता
ग़ज़ल
झूठ का हसीं परचम , देर तक नहीं रहता
यूँ दिखावे का ज़मज़म , देर तक नहीं रहता
मत डरा करो तूफां ,तेज बारिशों से तुम
गर्जता हुआ मौसम ,देर तक नहीं रहता
आँख भर ही आती है ,याद अब उन्हें करके
दिल में है छुपा जो गम ,देर तक नहीं रहता
तो कभी करा दो दीदार हुश्न ए मलिका
सिर्फ़ बात का मरहम ,देर तक नहीं रहता
खुद ब खुद सनम सुन आवाज को चले आए
हुश़्न इश्क़ से बरहम ,देर तक नहीं रहता
घाव भरही जाते हैं ,वक्त पर भुलाने से
दर्द सालता हरदम देर तक नहीं रहता
इश़्क दिल का गहरा हो तो लगी बुझा दें सब
मन में तो सुधा बाहम ,देर तक नहीं रहता
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
1/10/2022
वाराणसी ©®