ज़मीर
सुनने में अच्छे लगते जुमले,
जिस पर पडती वही रोता है ,
ईश्वर के बनाए सब इंसा,
फिर क्यों ऐसा होता है!
एक के लिए सब साज सामान ,
दूजा क्यों बोझा ढोता है,
मर गया आँखों का पानी
जमीर भी कहीं सो गया है,
कँधे पर अपनों की लाश,
गरीब 10 मिल तक ढोता है,
इंसानियत शर्मसार नहीं होती,
गफलत में तंत्र भी सोता है,
आम जन के हिस्से की रोशनी,
जाने कौन चुराता है ।
सावित्री राणा काव्य कुँज