ग़ज़ल
यही मिला है मुझे उसके प्यार में
बिखर गया हूँ मैं अपने हिसार में
किसी दिन रसोई में लग जाएंगे ताले
क्या नहीं मिलता अब दोस्तों बाज़ार में
ग़ुरूर मुझे अपनी तन्हाइयों पर है
हर वक़्त रहता हूँ फ़िक्र के हिसार में
अज़्म किया था एक तवील सफर का
पर छोड़ गया मुझे वो रहगुज़ार में
चल रहा है उसकी यादों का कारवां
जैसे खड़ा हूँ मैं किसी रेगज़ार में
इक सैलाब चाहिए इंक़लाब के लिए
आग जलती है जैसे लालाज़ार में
कोई मिल जाता है किसी को बेसाख्ता
उम्र कट जाती है कभी इंतज़ार में
बुझी है न बुझेगी ये आग अदब की
फरोजां है इतना मेरे किरदार में