ग़ज़ल
कितना प्यारा मंज़र है
मैं हूँ , चाक समंदर है
आँखों से वो ग़ायब क्यों
धरती के जो अन्दर है
उसके धन की चर्चा इतना
जैसे कोई समंदर है
अभी गाँव से आया हूँ
बचपन का सारा मंज़र है
जुदा हुए तो अरसा बीता
यादों का एक समंदर है
सुर बदला पर ताल नहीं
सियासत का यही हुनर है
ऊँट की चोरी चुपके चुपके
ज़रूर ये कोई लीडर है
ख़त उसके सब जला दिए
यादों का एक समंदर है
मैं हूँ एक सफीना जिसमें
उसकी यादों का लंगर है
उसकी गली से गुज़रा हूँ
यादो का एक समंदर है