ग़ज़ल
कोई एक नहीं सारा निज़ाम है सवालों में
वफ़ा खड़ी है बरहना अवाम के दलालों में
सब को मिलेगी रोटी फिर उसके बाद रोज़ी
तस्कीन वो देता है अक्सर हमें खयालों में
ज़रखेज़ है आज बहुत सियासत की ये धरती
धनवान सब हो गए कल तक थे जो कंगालों में
सोने नहीं देता मुझे लम्स तेरी ज़ुल्फ़ों का
अब रात की नींद मिला करती है उजालों में
बच्चों को अब क्यूँकर “एहसास”” मिलेंगे दाने,
माँ तो सिमट गयी है सय्याद के निवालों में.