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16 Sep 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122/2122/2122/212

ख़ूबसूरत सी हसीना एक मिल जाए कहीं
समंदर में यूँ सफ़ीना एक मिल जाए कहीं/1

नेक रहबर ज़िंदगी को यूँ सँवारे प्यार से
ज्यों अँगूठी को नगीना एक मिल जाए कहीं/2

लूट के धन में ख़ुशी इतनी नहीं मिलती कभी
हर ख़ुशी जिसमें पसीना एक मिल जाए कहीं/3

जी रहे हैं लोग चाहत प्यार में हर मौज़ से
पर मज़ा सावन महीना एक मिल जाए कहीं/4

ठीक से या फिर ग़लत से काम बनता हर यहाँ
पर ज़बर होता क़रीना एक मिल जाए कहीं/5

# आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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