ग़ज़ल
क्यूँ नज़र से नज़ारे जुदा हो गये
लग रहा खुद नज़र में खुदा हो गये
इश्क़ में कर सका बस मैं इतनी वफ़ा
बेवफा से बफा , बेवफा हो गये
हैरतों में हमीं हैं कि तुम भी हो कुछ
किस लिए थे चले और क्या हो गये
हाल ख़त – ओ-किताबत जरा देखिये
रोग, पैसा , दवा औ दुआ हो गये
नींव रिश्तों की क्यूँ कर दरकने लगी
दिल के जज़्बात क्यूँ कर हवा हो गये
चीख मंदिर से लेकर के मस्जिद तलक
और क्या राह थी , ” बेजुबां” हो गये
…रविन्द्र श्रीवास्तव” बेजुबान”…..