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13 Dec 2020 · 1 min read

ग़ज़ल- चरण पादुका से न इज्ज़त उतारो

मुझे यूँ न देखो कुँवारा नहीं हूँ
किसी और का हूँ तुम्हारा नहीं हूँ

न छत पे बुलाओ मुझे रात में तुम
मैं इंसान हूँ चाँद-तारा नहीं हूँ

भले मुझको दौड़ा रहे चार कुत्ते
मुहब्बत की बाज़ी मैं हारा नहीं हूँ

न होगा कोई देखकर मुझको घायल
मैं तेरी नज़र का इशारा नहीं हूँ

चरण पादुका से न इज्ज़त उतारो
मैं आशिक़ हूँ लेकिन आवारा नहीं हूँ

तुझे कूद जाऊँगा लेकर नदी में
कि मझधार हूँ मैं किनारा नहीं हूँ

ये माना कि ‘आकाश’ नमकीन हूँ मैं
समुंदर का जल कोई खारा नहीं हूँ

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 13/12/2020

9 Likes · 6 Comments · 1057 Views
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