ग़ज़ल:- मैं बहुत साद हूं
. ** ग़ज़ल **
5.2.17 *** 11.45
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मैं बहुत साद हूं तेरी बेखुदी से
तूं है मेरी उम्मीदो का राज़
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मैं बहुत साद हूं तेरी बेखुदी से
मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं
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जुल्मी तेरे जुल्मों – सितम से
मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं
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चाहा बहुत है तुझको बहुत
तूं रहा अनजान मेरे रहगुजर से
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मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं
अपनी गमी ना गमगीन हूं मैं
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तेरी ख़ुशी अब मेरी ख़ुशी है
ग़म मेरा ना कम कोई बात नहीं
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तेरे दिल का जो अरमान हूं मैं
तेरी ख़ुशी में अब मेरी ख़ुशी है
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मुझे ख़ुशी है जो कम कर सकूं
ग़म जो तेरा मैं बहुत साद हूं
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हां मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं
मेरे ग़म तूं अंजान है मुझको ख़ुशी
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इस बात की है मैं बहुत साद हूं हां
मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं
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तेरी बेख़ुदी से मैं बहुत साद हूं हां
मैं बहुत साद हूं मैं बहुत साद हूं ।।
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?मधुप बैरागी