ग़ज़ल:-नफ़रत की आंधियां
बसर की जिस शज़र के नीचे जिन्दगी अपनी
रोशनी पसर क्या आज उस शज़र तक पहुंची
नफ़रत की आंधिया इस असर तक पहुंची
प्यार के अमर शज़र ले सफर तक पहुंची
चारो ओर बेफ़िक्र डगर गुज़र तक पहुंची
सिर्फ़ तेरा घर छोड़ ग़ैर के घर तक पहुंची
आज मेरी आवाज़ ना तेरे कानो तक पहुंची
कल तरस कर , क्यूं नहीं मेरे दर तक पहुंच
ठहर ठहर डर डर कर कब घर तक पहुंची
चाह कर भी क्या अजर अमर तक पहुंची
कब साहिल मिलता है मझधार से
कश्ती पतवार ले भँवर तक पहुची
कहानी कहां ख़त्म होती है दरिया ओ समंदर
नदिया-समंदर-भाप फिर बन सफ़र तक पहुंची
कह दो अब किनारों से कितना दूर हो लें
आज मझधार साहिल के घर तक पहुंची
घर अब दूर नहीं है तेरा मेरे नगर से
चल कर सफर तेरे घर तक पहुंची ।।
?मधुप बैरागी