ग़ज़ल/जीने की वजहा मिल जाए
इक दिन मुझें भी जीने की वजहा मिल जाए
जो तेरे दिल में थोड़ी सी भी जगहा मिल जाए
ये क़दम बेचैन हैं बड़े तेरे पहलू में आ जाने को
तेरा मकां मिल जाए तो इन्हें भी जहाँ मिल जाए
मैं पागल हूँ थोड़ा सा मजनू,थोड़ा राँझा मेरी जाँ
आऊँगा ज़रूर तू जाने किस कूचे में कहाँ मिल जाए
तू देखना राह मेरी कि कहीं से भी गुज़र सकता हूँ
तेरे शहर में अज़नबी बनकर आऊँगा दुआँ मिल जाए
जानें क्या क्या छुपा रक्खी होंगी तूने दास्तानें ज़िन्दगी
तकते तकते प्यास बुझे जो तेरी आँखों में कुआँ मिल जाए
~अजय “अग्यार