ग़ज़ल/ इश्क़ तो कहीं भी कीजिए
सच्चे आशिकों से कभी ना दिल्लगी कीजिए
गर इश्क़ है तो कीजिए, वरना बन्दगी कीजिए
दिलदार हु बु हु दिल जैसा बार बार नहीं मिलता
मिल जाए तो मिल लीजिए ज़रा तिश्नगी कीजिए
चंद खुदगर्ज़ ख़्वाहिशें अक्सर जहाज़ डुबो देती हैं
ओ यारा इज़हार कर ज़िन्दगी को ज़िन्दगी कीजिए
क़दम दर क़दम ख़ून ए ज़िगर करने को बैठें हैं लोग
तुम दिल की ही कीजिए कभी ना ख़ुदकुशी कीजिए
इक शायर हमदर्द सभी का फ़कत लिखता है बारहाँ
ना जात देखिए ना मज़हब,इश्क़ तो कहीं भी कीजिए
~अजय “अग्यार