ग़ज़ल।।होती हैं माँ की दुआ और तरह की।।
देख कर नज़रो से हमे वो मुस्काये ऐसे
दिल से मेरे आयी थी सदा और तरह की
वो आये थे ख्यालों ख्याल में इस तरह
जिंदगी में गम भुलाया और तरह की
हर कोई नही होता एक तरह का दुनिया में
सबकी अलग होती हैं अदा और तरह की
होती है मुहब्बत की दवा और तरह की,
इस जुर्म में मिलती है सज़ा और तरह की
वैसे तो लाज़मी मरना हैं यहाँ सभी का
होती है ये यादों की कज़ा और तरह की
क्या साधु क्या जोगी क्या मस्त कलंदर
दुनिया ये अफलातून हैं और तरह की।।
सब की सदा होती हैं दुआएँ अपने साथ
मगर होती हैं माँ की दुआ और तरह की।।
®आकिब जावेद