ग़ज़ल!!यूँ तेरी जुल्फ़े निहारी जा रही है!!
मेरे हर सोच में तेरा शय शामिल
किस्मत हमारी सँवारी जा रही हैं
जिंदगी हो गयी हैं रंगमंच की तरह
जैसी भी हो अब गुज़ारी जा रही हैं
वो सर्द रात और तेरा अहसास
यूँ तेरी जुल्फे निहारी जा रही हैं
ख्वाबो की जिल्द पे वो हँसी नींद
जैसे किसी की नज़र उतारी जा रही हैं
मैं तेरा हो जाऊ अब तू मेरा हो जाये
छुप छुप के तुझे निहारी जा रही हैं।।
मुकद्दर बाद मिलना मेरे यार से
वो चुप चुप मुझे निहारी जा रही हैं
लबो पे उसके नाम हमारा जारी हैं
फिर भी भूलने की बीमारी जा रही हैं
इक यादो का समंदर भरा था दिल में मेरे
बेसुध अब उनकी ही तबियत सुधारी जा रही हैं
®आकिब जावेद