!!ग़ज़ल!!ऐसे ही चलता रहे अब कारवाँ अपना
मैं तेरा हो जाऊँगा,तू मेरा हो जाना
ऐसे ही चलता रहे अब कारवाँ अपना।।
हर चेहरे पे यहाँ एक मुखौटा देखा
किसको बनाये यहाँ राजदां अपना।।
देखा था हूबहू एक शख्स ऐसा ही
आईने में दिखता हैं यूँ निशां अपना।।
ख्वाब में सजाया था एक जहाँ उल्फ़त का
बाँह में हमारी होता अब कोई जहाँ अपना।।
दिल की धड़कनों पे किसी और का हक हैं
उस निशां पे कैसे सजाये आशियाँ अपना।।
ये दिलकश नज़ारे ये सोख हँसी वादियां
सब तुझे देख कर हुस्न कर रहे बयाँ अपना।।
किसको दोष दें बोलो अपनी हम तबाही का
आग भी हमारी है ‘आकिब’और धुआँ अपना।।
®आकिब जावेद