ख़ामोश फ़ासले से रहे हैं किसी से हम
जितना क़रीब जा के मिले ज़िन्दगी से हम
महसूस हो गया कि मिले अजनबी से हम
ख़ामोश फ़ासले से रहे हैं किसी से हम
देखा किये हैं रोज़ उन्हें दूर ही से हम
रहते क़रीब थे वो हमारे न क़द्र की
बैचेन बेसुकून हैं उनकी कमी से हम
मंज़िल पे ले चले कि कहीं छोड़ दे हमें
अबकी सफ़र में साथ हैं उनकी ख़ुशी से हम
बैठे हैं सामने वो मेरे आँख नम लिये
जिनकी तो मुतमईन थे ज़िन्दादिली से हम
इस बात पर भी लोग ख़फ़ा हो गये कि क्यूँ
बेबाक बोलते हैं जिये सादगी से हम
जुगनू कभी मिला तो कभी संग था दिया
बेख़ौफ़ ही लड़े हैं सदा तीरगी से हम
पहले बड़ा था शौक़ कि सरवर कोई कहे
अब तंग आ चुके हैं इसी सरवरी से हम
जो यार महफ़िलों की कभी जान थे सदा
गुमनाम हो गये हैं कहें क्या किसी से हम
‘आनन्द’ मुफ़लिसी के सताये थे इस क़दर
इस बार देखते ही रहे बेबसी से हम
शब्दार्थ:- सरवर = सरदार/Leader
डॉ आनन्द किशोर