ख़ामोश रह कर अक्सर गुनगुनाता हूँ
ख़ामोश रह कर अक्सर गुनगुनाता हूँ
ग़म हो फिर भी मुस्कुराता हूँ
ज़ालिम है दुनिया इंसानी वेश में
सर्प विचरण करते है
विष को उनके अमृत समझ निगल जाता हूँ
भूपेंद्र रावत
ख़ामोश रह कर अक्सर गुनगुनाता हूँ
ग़म हो फिर भी मुस्कुराता हूँ
ज़ालिम है दुनिया इंसानी वेश में
सर्प विचरण करते है
विष को उनके अमृत समझ निगल जाता हूँ
भूपेंद्र रावत