ॐ
17. 🕉
ॐ आदि है ऊँ अन्त है ॐ जगत का पालनहार ।
ॐ सृष्टि का मूल रचयिता ॐ सृष्टि का है संहार ।।
ॐ धरा है ॐ गगन है ॐ व्योम का है विस्तार ।
ऊँ वायु है ॐ अग्नि है ऊँ सिन्धु है अपरम्पार ।।
ॐ अनन्त है ॐ अखण्ड है और यही अविनाशी है।
ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों का ये अध्यासी है ।।
ॐ स्वयं ही बीज मंत्र है एकाक्षर कहलाता है ।
ॐ ॐ जो जीव रटे खुद ओंकार हो जाता है ।।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ
ऊँ ऊँ ऊँ
ऊँ
प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)