हक़ीक़त
आदमी कितना लाचार है ,
सब कुछ हासिल करने पर भी,
कुदरत के हाथो बेज़ार है,
दौलत लुटाकर भी ज़िदगी के दो पल खरीद नही सकता ,
भरसक कोशिश करने पर भी सांसों की टूटती डोर को थाम नही सकता,
शोहरत जो कमाई थी उसने, किसी काम ना
आ सकी ,
मौत भी उसका कोई फ़र्क कर, कुछ भी तवज्जोह दे सकी,
उसे भी आम आदमी की मौत मरना पड़ेगा ,
खाली आया था वो , खाली हाथ ही जाना पड़ेगा,