हो विसर्जन
जीवन रुकने का नहीं
जीवन चलता है सदा,
निश्चित आवश्यक है
निरन्तर आगे बढ़ना
है प्रगति की पहचान यही
फिर भी कभी जब
पथ से गुजरते हुए
निरन्तर थकान का
हो रहा हो अनुभव
अथवा पुष्पों से
खोती हुई लगे सुरभि
और दृश्यों से गुम होती
प्रतीत होने लगे प्रकृति
रिश्तों में आने लगी विकृति
दोस्ती में बदलने लगे नियति,
तब वापसी कहीं अधिक
आवश्यक है
ताकि किया जा सके
परिमार्जन !
बीती बातों का करें विसर्जन,
दृढ़ता से मन होअलंकरण,
लाख टाले गर कोई
टरें नहीं कतई
आगे बढ़े कदम निरंतर।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान