हो कितना भी दूर किनारा
हो कितना भी दूर किनारा ।
यदि कोई मन से न हारा।
प्रतिकूल धाराओं में भी ,
वह आगे बढ़ जाता है …..
नींद चैन को जिसने छोड़ा ।
संघर्षों से नाता जोड़ा ।।
मेहनत करके बहा पसीना ,
सब सपने गढ़ जाता है …..
जिसने त्यागी हीन भावना ।
उसकी होती सफल साधना ।।
एकलव्य बन वही लक्ष्य के,
सभी वेद पढ़ जाता है …..
– सतीश शर्मा सिहोरा , नरसिंहपुर